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📘ऑप्शन बायिंग मास्टरक्लास — शुरुआत से प्रो तक ।
इस कोर्स में आप Option Buying के सभी जरूरी fundamentals, entry strategy, SL management और psychology को आसान हिंदी भाषा में सीखेंगे।
🧱 संरचना: 8 मॉड्यूल + अभ्यास प्रश्न + अंतिम सारांश
🎯 उद्देश्य: इस कोर्स के बाद आप समझ पाएंगे कि ऑप्शन बायिंग क्या है, कैसे करते हैं, और इसमें सफल होने की रणनीतियाँ क्या हैं।

✅ कोर्स संरचना (Course Structure in Hindi)
🧩 मॉड्यूल 1: ऑप्शन ट्रेडिंग का परिचय
- ऑप्शन क्या होता है?
- कॉल ऑप्शन और पुट ऑप्शन में अंतर
- स्ट्राइक प्राइस, प्रीमियम, एक्सपायरी डेट जैसे जरूरी शब्द
- ऑप्शन ट्रेडिंग क्यों करते हैं?
🧩 मॉड्यूल 2: ऑप्शन खरीदना बनाम ऑप्शन बेचना
- ऑप्शन खरीदना और बेचना – मूल अंतर
- ऑप्शन बायर और सेलर के रिस्क व रिवार्ड
- पे-ऑफ डायग्राम की मदद से समझना
🧩 मॉड्यूल 3: ऑप्शन प्रीमियम कैसे तय होता है
- अंदरूनी (Intrinsic) और बाहरी (Extrinsic) वैल्यू
- टाइम डिके (Theta) का असर
- वोलैटिलिटी (IV) का प्रीमियम पर प्रभाव
- ग्रीक्स (Delta, Gamma, Theta, Vega, Rho) का परिचय
🧩 मॉड्यूल 4: सही ऑप्शन कैसे चुनें
- ITM, ATM और OTM ऑप्शन का मतलब
- वॉल्यूम और ओपन इंटरेस्ट कैसे देखें
- एंट्री का सही समय कैसे चुनें
- सेक्टर या कंपनी के नतीजों पर ऑप्शन कैसे ट्रेंड करते हैं
🧩 मॉड्यूल 5: ऑप्शन बायिंग की प्रमुख रणनीतियाँ
- सिर्फ कॉल या पुट खरीदना
- लॉन्ग टर्म ऑप्शन (LEAPS)
- प्रोटेक्टिव पुट
- लॉन्ग स्ट्रैडल और लॉन्ग स्ट्रैंगल
- कॉल/पुट स्प्रेड्स
- किस स्थिति में कौन सी रणनीति चुननी चाहिए?
🧩 मॉड्यूल 6: टेक्निकल और फंडामेंटल एनालिसिस
- चार्ट्स और पैटर्न्स कैसे पढ़ें
- सपोर्ट/रेजिस्टेंस की पहचान
- RSI, MACD, Moving Averages का उपयोग
- न्यूज़, इवेंट और अर्निंग्स पर ऑप्शन ट्रेडिंग
🧩 मॉड्यूल 7: ऑप्शन बायिंग में जोखिम और मैनेजमेंट
- कैपिटल मैनेजमेंट
- नुकसान को सीमित रखने की तकनीकें
- ट्रेलिंग स्टॉप लॉस और प्रीमियम की ट्रैकिंग
- ओवरट्रेडिंग से बचाव
🧩 मॉड्यूल 8: लाइव उदाहरण और केस स्टडीज़
- एक रियल मार्केट केस स्टडी
- ऑप्शन बायिंग से प्रॉफिट और नुकसान की स्टोरी
- लॉगबुक कैसे बनाएं
- सीखने के लिए फ्री टूल्स और प्लेटफॉर्म
📚 अंतिम सारांश और अभ्यास प्रश्न
आगे कहां से और कैसे सीख सकते हैं?
कोर्स का रीकैप
आप क्या सीख चुके हैं?
सेल्फ-टेस्ट प्रश्न

🧠 📘 ऑप्शन बायिंग मास्टरक्लास — मॉड्यूल 1
🧠 ऑप्शन क्या है?
ऑप्शन एक डेरिवेटिव फाइनेंशियल इंस्ट्रूमेंट है, जिसका मूल्य किसी अंडरलाइन एसेट (जैसे कि शेयर, इंडेक्स, कमोडिटी आदि) पर आधारित होता है। ऑप्शन दो प्रकार के होते हैं:
- Call Option (कॉल ऑप्शन): यह आपको भविष्य में एक तय कीमत पर किसी एसेट को खरीदने का अधिकार देता है।
- Put Option (पुट ऑप्शन): यह आपको भविष्य में एक तय कीमत पर किसी एसेट को बेचने का अधिकार देता है।
👉 ध्यान दें: ऑप्शन आपको “अधिकार” देता है, ना कि “ज़िम्मेदारी”। यानी, आप ऑप्शन को एक्सरसाइज़ कर सकते हैं या छोड़ सकते हैं।
📘 ऑप्शन ट्रेडिंग के मुख्य घटक
- अंडरलाइन एसेट (Underlying Asset): वो शेयर या इंडेक्स जिससे ऑप्शन जुड़ा होता है। जैसे: NIFTY, BANKNIFTY, RELIANCE आदि।
- स्ट्राइक प्राइस (Strike Price): वह कीमत जिस पर आप भविष्य में खरीद/बिक्री करना चाहते हैं।
- एक्सपायरी डेट (Expiry): ऑप्शन की एक तय समय सीमा होती है, जिसके बाद वह बेकार हो जाता है।
- प्रीमियम (Premium): ऑप्शन खरीदने के लिए आपको जो कीमत चुकानी होती है, उसे प्रीमियम कहते हैं।
- लॉट साइज (Lot Size): ऑप्शन हमेशा फिक्स लॉट साइज में ट्रे़ड होते हैं (जैसे NIFTY = 50, BANKNIFTY = 15 आदि)।
🔍 एक सिंपल उदाहरण:
मान लीजिए:
- आप NIFTY का 22,000 का कॉल ऑप्शन खरीदते हैं, जिसकी प्रीमियम कीमत ₹100 है।
- NIFTY की वर्तमान कीमत है ₹21,800
- एक्सपायरी है अगले गुरुवार को
अगर NIFTY एक्सपायरी तक ₹22,300 पर पहुंच जाए, तो:
- आपका ऑप्शन ₹300 ITM (इन-द-मनी) हो गया
- आपने ₹100 प्रीमियम दिया था → आपका नेट प्रॉफिट = ₹300 – ₹100 = ₹200 प्रति यूनिट
- एक लॉट में 50 यूनिट होती है → ₹200 × 50 = ₹10,000 का मुनाफा
✅ ऑप्शन क्यों खरीदें?
- लिमिटेड रिस्क: प्रीमियम से ज्यादा नुकसान नहीं हो सकता।
- अनलिमिटेड प्रॉफिट: विशेषकर कॉल ऑप्शन में
- हेजिंग: अपनी पोर्टफोलियो को मार्केट गिरने पर सुरक्षित रखने के लिए
- स्पेक्युलेशन: कम पूंजी में बड़ा मुनाफा कमाने की संभावना
🚫 ऑप्शन खरीदने की गलतफहमियाँ
- “ऑप्शन खरीदना आसान पैसा है” — गलत। यहां रिस्क भी है।
- “हर बार मुनाफा होगा” — गलत। अधिकतर ऑप्शन एक्सपायर हो जाते हैं।
- “सिर्फ प्राइस देख कर ऑप्शन खरीदो” — नहीं, वोलैटिलिटी, समय, ग्रीक्स भी समझना जरूरी है।

📘 ऑप्शन बायिंग मास्टरक्लास — मॉड्यूल 2
🧩 मॉड्यूल 2: ऑप्शन खरीदना बनाम ऑप्शन बेचना
🔄 ऑप्शन खरीदना (Buying) और ऑप्शन बेचना (Selling) में अंतर
पहलू | ऑप्शन खरीदना (Buyer) | ऑप्शन बेचना (Seller / Writer) |
---|---|---|
रिस्क | सीमित (प्रीमियम तक) | अनलिमिटेड |
रिवार्ड | अनलिमिटेड (Call में), बड़ा (Put में) | सीमित (केवल प्रीमियम) |
रणनीति | बुलिश/बेयरिश मूवमेंट पर दांव | मार्केट रेंज में रहने पर फायदा |
समय का प्रभाव | नुकसान (Time Decay से) | फायदा (Time Decay से) |
लागत | कम पूंजी में ट्रेड | मार्जिन की ज़रूरत |
🔍 ऑप्शन बायर्स का सोचने का तरीका:
- मार्केट में तेज़ मूवमेंट की उम्मीद होती है
- वो प्रीमियम चुकाते हैं, जिससे अधिकतम नुकसान तय होता है
- उम्मीद करते हैं कि प्रीमियम कई गुना बढ़े
🧠 उदाहरण:
आपने ₹100 पर NIFTY का 22,000 कॉल ऑप्शन खरीदा।
अगर NIFTY 22,300 चला गया → ऑप्शन का वैल्यू ₹300 हो सकता है → मुनाफा ₹200 प्रति यूनिट।
🔍 ऑप्शन सेलर्स का सोचने का तरीका:
- वो सोचते हैं कि मार्केट एक सीमित दायरे में ही रहेगा।
- प्रीमियम लेते हैं और चाहते हैं कि ऑप्शन एक्सपायर हो जाए।
- लेकिन अगर प्राइस तेज़ी से भागता है, तो नुकसान बहुत बड़ा हो सकता है।
⚠️ उदाहरण:
किसी ने ₹100 प्रीमियम लेकर 22,000 कॉल ऑप्शन बेचा।
अगर मार्केट 22,300 चला गया → अब उसे ₹300 देना होगा → नुकसान ₹200 प्रति यूनिट।
⚖️ कब ऑप्शन खरीदना बेहतर है?
- जब आपको मार्केट में तेज़ मूवमेंट की उम्मीद हो (बुलिश या बेयरिश)
- जब वोलैटिलिटी बढ़ने वाली हो
- इवेंट्स (जैसे रिज़र्व बैंक पॉलिसी, बजट, अर्निंग्स) से पहले
⚖️ कब ऑप्शन बेचना बेहतर है?
- जब मार्केट साइडवेज़ या रेंज में रहने की संभावना हो
- जब टाइम डिके आपके पक्ष में काम करे
- जब वोलैटिलिटी बहुत ज़्यादा हो और गिरने की संभावना हो
📊 पे-ऑफ डायग्राम (Payoff Diagram):
✔️ ऑप्शन खरीदार (Call Buyer)
perlCopyEdit Profit
|
| /
| /
| /
|______/
|
|_____________________ Price
(Strike)
❌ ऑप्शन विक्रेता (Call Seller)
javaCopyEdit Profit
|\
| \
| \
| \___________________ Loss
|
|_____________________ Price
(Strike)
✅ निष्कर्ष:
- ऑप्शन खरीदना: सीमित नुकसान, अनलिमिटेड मुनाफा, लेकिन सही दिशा और टाइमिंग जरूरी है।
- ऑप्शन बेचना: सीमित मुनाफा, अनलिमिटेड नुकसान का खतरा, लेकिन टाइम डिके का फायदा।
👉 ऑप्शन बायर्स अक्सर सही दिशा पकड़ते हैं, लेकिन समय से हार जाते हैं। वहीं ऑप्शन सेलर्स अक्सर समय और
वोलैटिलिटी के भरोसे खेलते हैं
📘 ऑप्शन बायिंग मास्टरक्लास — मॉड्यूल 3
🧩 मॉड्यूल 3: ऑप्शन प्रीमियम कैसे तय होता है?
🏷️ ऑप्शन प्रीमियम — इसका मतलब क्या है?
जब आप ऑप्शन खरीदते हैं, तो आपको एक कीमत चुकानी पड़ती है, जिसे प्रीमियम कहते हैं। यह प्रीमियम दो भागों से मिलकर बनता है:
- इंट्रिंसिक वैल्यू (Intrinsic Value)
- एक्सट्रिंसिक वैल्यू (Extrinsic Value या टाइम वैल्यू)
1️⃣ इंट्रिंसिक वैल्यू (Intrinsic Value)
यह ऑप्शन का वो हिस्सा है जो वास्तविक मूल्य दर्शाता है।
- कॉल ऑप्शन के लिए:
इंट्रिंसिक वैल्यू = (मार्केट प्राइस – स्ट्राइक प्राइस)
अगर यह नकारात्मक हो तो = 0 - पुट ऑप्शन के लिए:
इंट्रिंसिक वैल्यू = (स्ट्राइक प्राइस – मार्केट प्राइस)
अगर नकारात्मक हो तो = 0
2️⃣ एक्सट्रिंसिक वैल्यू (Extrinsic Value या टाइम वैल्यू)
यह प्रीमियम का वह हिस्सा है जो समय, वोलैटिलिटी, और अन्य मार्केट फैक्टर्स पर निर्भर करता है।
समय और वोलैटिलिटी जितनी ज़्यादा होगी, एक्सट्रिंसिक वैल्यू उतनी अधिक होगी।
⏳ टाइम डिके (Time Decay या Theta)
- ऑप्शन प्रीमियम का यह हिस्सा हर दिन घटता जाता है क्योंकि एक्सपायरी डेट नजदीक आती है।
- जब ऑप्शन की एक्सपायरी करीब होती है, तो टाइम वैल्यू लगभग शून्य हो जाती है।
- यह विशेषकर ऑप्शन सेलर्स के लिए लाभकारी होता है, क्योंकि उनका प्रॉफिट टाइम के साथ बढ़ता है।
🌪️ वोलैटिलिटी (Volatility) का असर
- इंप्लाइड वोलैटिलिटी (Implied Volatility – IV): यह भविष्य में मार्केट मूवमेंट की उम्मीद को दर्शाता है।
- जब IV बढ़ती है, तो ऑप्शन प्रीमियम बढ़ता है (क्योंकि अधिक मूवमेंट की संभावना होती है)।
- जब IV गिरती है, तो प्रीमियम घटता है।
🔢 ऑप्शन के “ग्रीक्स” (Greeks)
ग्रीक्स वो मेट्रिक्स हैं, जो ऑप्शन प्रीमियम की कीमत और जोखिम को मापते हैं:
Greek | मतलब | असर |
---|---|---|
Delta | प्राइस सेंसेटिविटी | underlying asset के मूवमेंट पर प्रीमियम का परिवर्तन |
Gamma | Delta का परिवर्तन | Delta में परिवर्तन की रफ्तार |
Theta | टाइम डिके | समय के साथ प्रीमियम में कमी |
Vega | वोलैटिलिटी का असर | IV में बदलाव से प्रीमियम में परिवर्तन |
Rho | इंटरेस्ट रेट का असर | ब्याज दर में बदलाव से प्रीमियम पर प्रभाव |
🧩 सरल शब्दों में समझें:
- Delta: अगर शेयर 1 रुपये बढ़े, तो ऑप्शन प्रीमियम कितने रुपये बदलेगा?
- Theta: रोज़ाना प्रीमियम कितने पैसे घटेगा (समय के कारण)?
- Vega: वोलैटिलिटी 1% बढ़ने पर प्रीमियम में कितना बदलाव होगा?
🧠 उदाहरण
मान लीजिए, NIFTY 22,000 कॉल ऑप्शन का प्रीमियम ₹150 है, जिसमें:
- ₹100 इंट्रिंसिक वैल्यू है
- ₹50 एक्सट्रिंसिक वैल्यू है (टाइम और वोलैटिलिटी के कारण)
अगर एक्सपायरी नजदीक आ रही है, तो यह ₹50 घटता जाएगा।
✅ महत्वपूर्ण बातें
- ऑप्शन प्रीमियम केवल मार्केट प्राइस पर निर्भर नहीं करता, बल्कि समय, वोलैटिलिटी, और ग्रीक्स का भी बड़ा रोल होता है।
- टाइम डिके ऑप्शन बायर्स के लिए नुकसानदेह होता है, जबकि ऑप्शन सेलर्स के लिए फायदेमंद।
- वोलैटिलिटी बढ़ने पर ऑप्शन प्रीमियम बढ़ता है, इसलिए इवेंट्स के आसपास ट्रेडर वोलैटिलिटी पर ध्यान देते हैं

📘 ऑप्शन बायिंग मास्टरक्लास — मॉड्यूल 4
🧩 मॉड्यूल 4: सही ऑप्शन कैसे चुनें — ITM, ATM, OTM और लिक्विडिटी की समझ
1️⃣ ITM, ATM, OTM ऑप्शन क्या होते हैं?
ITM (In The Money)
- कॉल ऑप्शन: जब अंडरलाइन एसेट की कीमत स्ट्राइक प्राइस से ऊपर हो।
उदाहरण: NIFTY 22,000 कॉल ऑप्शन और NIFTY की कीमत 22,100 हो। - पुट ऑप्शन: जब अंडरलाइन एसेट की कीमत स्ट्राइक प्राइस से नीचे हो।
उदाहरण: NIFTY 22,000 पुट ऑप्शन और NIFTY की कीमत 21,900 हो।
फायदा: ITM ऑप्शन की इंट्रिंसिक वैल्यू होती है, इसलिए इनके प्रीमियम ज्यादा होते हैं, लेकिन जोखिम कम होता है।
ATM (At The Money)
- जब अंडरलाइन एसेट की कीमत लगभग स्ट्राइक प्राइस के बराबर हो।
उदाहरण: NIFTY 22,000 कॉल या पुट ऑप्शन और NIFTY की कीमत लगभग 22,000।
फायदा: प्रीमियम मध्यम होता है, और ये ऑप्शन ज्यादा ट्रेंडिंग होते हैं।
OTM (Out of The Money)
- कॉल ऑप्शन: जब अंडरलाइन एसेट की कीमत स्ट्राइक प्राइस से नीचे हो।
उदाहरण: NIFTY 22,000 कॉल ऑप्शन और NIFTY की कीमत 21,800। - पुट ऑप्शन: जब अंडरलाइन एसेट की कीमत स्ट्राइक प्राइस से ऊपर हो।
उदाहरण: NIFTY 22,000 पुट ऑप्शन और NIFTY की कीमत 22,200।
फायदा: प्रीमियम कम होता है, लेकिन जोखिम ज्यादा होता है। बड़ा मुनाफा तब होता है जब मार्केट मूवमेंट तेज़ हो।
2️⃣ लिक्विडिटी क्यों जरूरी है?
- लिक्विडिटी मतलब ऑप्शन मार्केट में आसानी से खरीदा-बेचा जा सके।
- ज्यादा लिक्विड ऑप्शन में स्प्रेड (बिड-आस्क का फर्क) कम होता है।
- बेहतर प्राइसिंग और कम स्लिपेज मिलता है।
- ओपन इंटरेस्ट (OI) और वॉल्यूम देखकर लिक्विडिटी समझी जा सकती है।
3️⃣ ऑप्शन चुनते वक्त किन बातों का ध्यान रखें?
पॉइंट | महत्व |
---|---|
स्ट्राइक प्राइस | अपनी मार्केट व्यू के अनुसार चुनें (ITM, ATM, OTM) |
एक्सपायरी | टाइम फ्रेम के हिसाब से चुनें (कम या ज्यादा दिन) |
प्रीमियम | बजट और रिस्क लेने की क्षमता के अनुसार |
ओपन इंटरेस्ट (OI) | ज्यादा OI ऑप्शन बेहतर लिक्विडिटी देते हैं |
वॉल्यूम | ज्यादा वॉल्यूम ऑप्शन ज्यादा ट्रेड होते हैं |
वोलैटिलिटी (IV) | इवेंट्स के हिसाब से सही टाइमिंग चुनें |
4️⃣ एंट्री टाइमिंग और मार्केट कंडीशन्स
- जब वोलैटिलिटी कम हो और बढ़ने वाली हो, तो ऑप्शन खरीदना अच्छा होता है।
- न्यूज़ इवेंट्स, अर्निंग्स या RBI के फैसले के पहले ऑप्शन की कीमतें ज्यादा होती हैं।
- मार्केट का मूड (बुलिश, बेयरिश, साइडवेज़) समझना जरूरी है।
5️⃣ एक प्रैक्टिकल उदाहरण
आपका बजट ₹5,000 है, और आप NIFTY ऑप्शन खरीदना चाहते हैं:
- ITM ऑप्शन: प्रीमियम ₹500 (कम जोखिम, कम मुनाफा)
- ATM ऑप्शन: प्रीमियम ₹200 (मध्यम जोखिम, मध्यम मुनाफा)
- OTM ऑप्शन: प्रीमियम ₹50 (उच्च जोखिम, अधिक मुनाफा)
आप अपने रिस्क टॉलरेंस के हिसाब से चुन सकते हैं।
✅ सारांश
- ITM ऑप्शन: सुरक्षित, महंगे, कम रिस्क, कम रिवार्ड
- ATM ऑप्शन: संतुलित प्रीमियम और जोखिम
- OTM ऑप्शन: सस्ता, जोखिम अधिक, बड़ा मुनाफा संभव
- लिक्विडिटी: हमेशा ऑप्शन की लिक्विडिटी जांचें — ज्यादा वॉल्यूम और ओपन इंटरेस्ट वाले ऑप्शन बेहतर होते हैं।

📘 ऑप्शन बायिंग मास्टरक्लास — मॉड्यूल 5
🧩 मॉड्यूल 5: ऑप्शन बायिंग की प्रमुख रणनीतियाँ (Strategies)
🛠️ इस मॉड्यूल में आप सीखेंगे:
- कैसे सिर्फ कॉल या पुट खरीदना ही रणनीति नहीं है
- कैसे ऑप्शन बायिंग को स्मार्ट बनाया जा सकता है
- बड़ी चाल (Big Move) और सीमित पूंजी के लिए कौन सी रणनीति उपयुक्त है
1️⃣ सिर्फ कॉल ऑप्शन खरीदना (Long Call Strategy)
कब उपयोग करें?
- जब आपको लगे कि स्टॉक या इंडेक्स तेज़ी (Bullish) में जाएगा।
उदाहरण:
- NIFTY अभी 22,000 है, आप 22,100 का कॉल ऑप्शन ₹100 प्रीमियम में खरीदते हैं।
- अगर NIFTY एक्सपायरी पर 22,400 हो जाए → आपका मुनाफा = ₹300 – ₹100 = ₹200 प्रति यूनिट।
✅ फायदे:
- सीमित नुकसान, अनलिमिटेड मुनाफा
❌ नुकसान: - टाइम डिके तेजी से मारता है
- सही दिशा और समय दोनों का मेल जरूरी
2️⃣ सिर्फ पुट ऑप्शन खरीदना (Long Put Strategy)
कब उपयोग करें?
- जब आपको लगे कि मार्केट या स्टॉक गिरने वाला है (Bearish view)।
उदाहरण:
- BANKNIFTY अभी 48,000 है, आप 47,500 का पुट ऑप्शन ₹150 में खरीदते हैं।
- अगर BANKNIFTY गिरकर 47,000 हो जाए → प्रॉफिट = ₹500 – ₹150 = ₹350 प्रति यूनिट
✅ फायदे:
- गिरते मार्केट में हेजिंग और मुनाफा
❌ नुकसान: - अगर गिरावट नहीं हुई, तो टाइम डिके से नुकसान
3️⃣ लॉन्ग स्ट्रैडल (Long Straddle)
क्या होता है?
- एक साथ ATM कॉल और ATM पुट दोनों खरीदना।
कब करें?
- जब आपको लगे कि मार्केट में बहुत बड़ी चाल आएगी, लेकिन दिशा नहीं पता।
उदाहरण:
- NIFTY 22,000 पर है
- आप 22,000 का कॉल ₹100 में और 22,000 का पुट ₹120 में खरीदते हैं
- कुल निवेश = ₹220
अगर मार्केट 500+ पॉइंट्स ऊपर या नीचे गया → मुनाफा संभव
✅ फायदे:
- दिशा पता नहीं हो, लेकिन वोलैटिलिटी या मूवमेंट का भरोसा हो
❌ नुकसान: - अगर मार्केट साइडवेज़ रहा → दोनों ऑप्शन डिके होकर बेकार
4️⃣ लॉन्ग स्ट्रैंगल (Long Strangle)
क्या होता है?
- ATM की जगह OTM कॉल और पुट को एक साथ खरीदना
- कम प्रीमियम लगता है, लेकिन मार्केट में और बड़ी मूवमेंट चाहिए
उदाहरण:
- NIFTY 22,000 पर है
- 22,200 कॉल ₹60 और 21,800 पुट ₹70 → कुल = ₹130
- मार्केट 400–500 पॉइंट ऊपर/नीचे जाएगा तभी फायदा
✅ फायदे:
- कम प्रीमियम, दिशा की जरूरत नहीं
❌ नुकसान: - ज्यादा मूवमेंट जरूरी
5️⃣ बुल कॉल स्प्रेड (Bull Call Spread)
क्या होता है?
- एक कॉल ऑप्शन खरीदना (ITM/ATM) और एक OTM कॉल ऑप्शन बेचना
उदाहरण:
- 22,000 कॉल खरीदी ₹120 में
- 22,200 कॉल बेची ₹60 में
- कुल लागत = ₹60
- अधिकतम प्रॉफिट = स्ट्राइक डिफरेंस (200) – लागत = ₹140
✅ फायदे:
- सीमित रिस्क, सीमित रिवार्ड
- IV का असर कम
❌ नुकसान: - मुनाफा कैप्ड होता है (unlimited नहीं)
6️⃣ बेयर पुट स्प्रेड (Bear Put Spread)
क्या होता है?
- एक पुट ऑप्शन खरीदना और एक OTM पुट ऑप्शन बेचना
उदाहरण:
- 22,000 पुट खरीदी ₹150 में
- 21,800 पुट बेची ₹80 में
- नेट लागत = ₹70
- अधिकतम लाभ = 200 – 70 = ₹130
✅ फायदे:
- डाउनसाइड ट्रेड में सीमित नुकसान
❌ नुकसान: - प्रॉफिट कैप्ड
7️⃣ LEAPS (Long Term Options)
क्या होता है?
- Long-term Expiry वाले ऑप्शन (3 महीने से 1 साल तक)
- समय का असर कम होता है
✅ फायदे:
- लंबी अवधि में Directional View लेना
❌ नुकसान: - प्रीमियम ज़्यादा, लिक्विडिटी कम हो सकती है
⚖️ कौन सी रणनीति कब इस्तेमाल करें?
मार्केट व्यू | रणनीति |
---|---|
तेज़ी (Bullish) | Long Call, Bull Call Spread |
मंदी (Bearish) | Long Put, Bear Put Spread |
अनिश्चित दिशा | Straddle, Strangle |
लंबी अवधि | LEAPS |
कम बजट/सीमित रिस्क | Spreads |
✅ मॉड्यूल 5 समाप्त
अब आपने सीखा:
- ऑप्शन बायिंग में सिर्फ कॉल/पुट खरीदना ही सब कुछ नहीं
- स्मार्ट ट्रेडिंग के लिए स्ट्रैडल, स्ट्रैंगल और स्प्रेड्स ज़रूरी हैं
- सीमित पूंजी में भी रिस्क को कंट्रोल करके मुनाफा कमाया जा सकता है

📘 ऑप्शन बायिंग मास्टरक्लास — मॉड्यूल 6
🧩 मॉड्यूल 6: टेक्निकल और फंडामेंटल एनालिसिस — सही एंट्री और एक्ज़िट के लिए चार्ट्स और न्यूज़ का इस्तेमाल
🔍 ऑप्शन बायिंग में एनालिसिस क्यों ज़रूरी है?
ऑप्शन प्रीमियम तेज़ी से घटता है। इसलिए:
- अगर दिशा गलत, तो नुकसान तय।
- अगर समय गलत, तो नुकसान तय।
👉 इसलिए एक बायर को सिर्फ “कॉल या पुट लेना है” सोचने से पहले:
- टेक्निकल एनालिसिस से एंट्री टाइमिंग
- फंडामेंटल या न्यूज़ से इवेंट का अंदाज़ा लगाना चाहिए।
🧭 टेक्निकल एनालिसिस — चार्ट्स से दिशा समझो
🔹 1. ट्रेंड की पहचान
- सबसे पहले जानिए कि स्टॉक/इंडेक्स बुलिश, बेयरिश, या साइडवेज़ है।
- ट्रेंड लाइन, हाई/लो, मूविंग एवरेज मदद करते हैं।
उदाहरण:
BANKNIFTY 50 DMA के ऊपर है, RSI > 60 → बुलिश ट्रेंड
🔹 2. सपोर्ट और रेजिस्टेंस
- ऑप्शन स्ट्राइक वही चुनें जो सपोर्ट के पास (पुट) या रेज़िस्टेंस के पास (कॉल) हो।
उदाहरण:
NIFTY 21,800 पर सपोर्ट है → 21,800 पुट बेचना रिस्की हो सकता है।
🔹 3. इंडिकेटर्स का उपयोग
इंडिकेटर | मतलब |
---|---|
RSI | 70 के ऊपर Overbought, 30 के नीचे Oversold |
MACD | Trend Confirmation (Crossovers देखें) |
Bollinger Bands | वोलैटिलिटी और ब्रेकआउट की पहचान |
Moving Averages | Trend Direction और Reversal Signals |
🔹 4. कैंडलस्टिक पैटर्न्स
- Bullish Engulfing, Hammer, Shooting Star, Doji जैसे पैटर्न्स एंट्री के लिए संकेत देते हैं।
📢 फंडामेंटल और न्यूज़ एनालिसिस
🔸 1. बड़े इवेंट्स से पहले ऑप्शन बायिंग
- बजट, RBI पॉलिसी, कंपनी के तिमाही नतीजे, US FOMC, आदि से पहले वोलैटिलिटी बढ़ती है।
- इस समय पर स्ट्रैडल या स्ट्रैंगल फायदेमंद हो सकते हैं।
🔸 2. अर्निंग्स ट्रैडिंग (Results Play)
- अगर कंपनी के नतीजे अच्छे की उम्मीद हो → कॉल
- यदि खराब की आशंका हो → पुट
- दिशा का अंदाज़ा नहीं → स्ट्रैडल/स्ट्रैंगल
सावधानी: अर्निंग्स के बाद वोलैटिलिटी गिरती है (IV Crush), जिससे प्रीमियम अचानक गिर सकता है।
🔢 डेटा पॉइंट्स जो ऑप्शन बायर को देखने चाहिए
टूल/डेटा | क्यों ज़रूरी है? |
---|---|
OI (Open Interest) | स्ट्राइक पर कितने कांट्रैक्ट खुले हैं? |
PCR (Put Call Ratio) | मार्केट का मूड जानने के लिए |
IV (Implied Volatility) | वोलैटिलिटी बढ़ रही या घट रही है? |
FII डेटा | बड़े प्लेयर क्या कर रहे हैं? |
न्यूज़ और इवेंट्स | कब मूवमेंट आ सकता है? |
✅ एक सिंपल चेकलिस्ट (ऑप्शन खरीदने से पहले)
✔️ ट्रेंड क्या है?
✔️ सपोर्ट/रेजिस्टेंस कहाँ है?
✔️ IV हाई है या लो?
✔️ कोई इवेंट तो नहीं?
✔️ टेक्निकल इंडिकेटर क्या कह रहे हैं?
🧠 उदाहरण (लाइव लॉजिक)
MARKET: NIFTY = 22,000
- RSI = 75
- MACD Bullish
- IV High
- बजट 2 दिन में आने वाला है
रणनीति: Long Straddle (22,000 Call + 22,000 Put)
दोनों ऑप्शन महंगे होंगे, लेकिन अगर मार्केट 300+ पॉइंट ऊपर/नीचे भागा तो मुनाफा होगा।
📌 मॉड्यूल 6 समाप्त
अब आप समझ चुके हैं कि सिर्फ ऑप्शन खरीदना ही नहीं, बल्कि कब और क्यों खरीदना है — ये तय करना सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण है।

📘 ऑप्शन बायिंग मास्टरक्लास — मॉड्यूल 7
🧩 मॉड्यूल 7: ऑप्शन बायिंग में जोखिम और पूंजी प्रबंधन — ट्रेडिंग में अनुशासन कैसे रखें?
❗ पहले समझें — ऑप्शन बायिंग में सबसे तेज़ नुकसान होता है
- ऑप्शन बायर्स का सबसे बड़ा दुश्मन है: Time Decay (Theta)
- हर दिन आपका ऑप्शन धीरे-धीरे “溶” हो रहा होता है
- 70% से ज़्यादा ऑप्शन “एक्सपायरी तक ज़ीरो” हो जाते हैं
👉 इसलिए अगर आप पूंजी और रिस्क नहीं संभालेंगे, तो कुछ ही हफ्तों में अकाउंट खाली हो सकता है।
🔰 1️⃣ जोखिम प्रबंधन (Risk Management) के 5 सुनहरे नियम
✅ 1. प्रति ट्रेड पूंजी का सीमित उपयोग
- अपने कुल पूंजी का 1% से 2% से ज़्यादा कभी एक ट्रेड में न लगाएं
मान लीजिए आपका अकाउंट ₹1,00,000 है → एक ट्रेड में ₹2,000 से अधिक न लगाएं
✅ 2. प्रीमियम का हिसाब रखें
- छोटे प्रीमियम (₹20-₹50) वाले OTM ऑप्शन आकर्षक लगते हैं, लेकिन साफ़ नुकसान की संभावना ज़्यादा होती है
- बेहतर है थोड़ा महंगे लेकिन ITM/ATM ऑप्शन लें जो साफ़ मूवमेंट पर रिस्पॉन्ड करें
✅ 3. स्टॉप लॉस और टारगेट सेट करें
- जैसे शेयर ट्रेडिंग में SL लगाते हैं, वैसे ही ऑप्शन में प्रीमियम SL ज़रूरी है
🎯 उदाहरण:
- CALL खरीदा ₹100 में
- SL: ₹70
- Target: ₹180
→ RR = 1:2.66 → सही प्लान
✅ 4. रोज़ ट्रेडिंग करने की ज़रूरत नहीं
- ऑप्शन बायिंग एक हाई-प्रोबेबिलिटी गेम है
- सिर्फ तब ट्रेड करें जब:
- मार्केट में वॉल्यूम हो
- कोई साफ़ ट्रेंड हो
- IV कम हो और बढ़ने की संभावना हो
✅ 5. “LOOT की उम्मीद” छोड़ें
- ऑप्शन बायिंग = Time + Direction + Psychology का मैच
- यह लॉटरी नहीं है
- अपने ट्रेड्स को एक प्रोफेशनल की तरह मैनेज करें, जुआरी की तरह नहीं
💰 2️⃣ पूंजी प्रबंधन (Capital Management)
📌 ट्रेडिंग पूंजी और जीवन पूंजी अलग रखें
- ट्रेडिंग अकाउंट वही हो जिसमें आप पूरा नुकसान सह सकें
- घर का खर्च, लोन EMI, या सेविंग्स को खतरे में न डालें
📊 पोर्टफोलियो डिवाइड करें
कैटेगरी | % पूंजी | उद्देश्य |
---|---|---|
ऑप्शन बायिंग | 30% | हाई रिस्क, हाई रिवार्ड |
ऑप्शन सेलिंग (बाद में) | 40% | स्टेबल इनकम (मार्जिन ज़रूरी) |
लॉन्ग टर्म स्टॉक्स | 20% | ग्रोथ और डिविडेंड |
कैश/FD/सावधि | 10% | इमरजेंसी फंड |
🧠 3️⃣ ट्रेडिंग मनोविज्ञान (Psychology)
🚫 गलत आदतें जो हर ऑप्शन बायर को ले डूबती हैं:
- “अभी 10 रुपये का है, एक्सपायरी तक 100 हो जाएगा!”
- “4 ट्रेड्स लॉस हो गए? अब तो ये वाला चलेगा!”
- “Full margin लगा दो, आज तो jackpot आएगा!”
- “Loss को निकालने के लिए दुगुना quantity!”
👉 ये सब आदतें आपको मार्केट से बाहर कर सकती हैं
✅ सही आदतें:
- लॉगबुक रखें: हर ट्रेड का कारण, एंट्री, एक्ज़िट, भावनाएं लिखें
- हर शुक्रवार या महीने के अंत में पढ़ें और सीखें
- Losing स्ट्रीक आए? 2 दिन ब्रेक लें
- हर जीत पर अहंकार मत पालें, और हर हार पर खुद को मत कोसें
✅ एक सिंपल नियम: “3 लॉस लगातार? → 2 दिन नो ट्रेड”
- ट्रेडिंग से ब्रेक लेना भी एक रणनीति है
- दिमाग ठंडा रहेगा, पूंजी बचेगी, मनोबल नहीं टूटेगा
✅ मॉड्यूल 7 समाप्त
अब आपने सीखा:
- कैसे ऑप्शन बायिंग में पूंजी उड़ती है
- कैसे प्रोफेशनल रिस्क मैनेजमेंट से इसे रोका जा सकता है
- कैसे मन की स्थिरता और डिसिप्लिन आपको 90% ट्रेडर्स से आगे रखती है

📘 ऑप्शन बायिंग मास्टरक्लास — मॉड्यूल 8
🧩 मॉड्यूल 8: लाइव ट्रेडिंग प्लान — ऑप्शन बायर्स के लिए Step-by-Step वीकली सिस्टम
🗓️ सप्ताह की शुरुआत — सोमवार/मंगलवार: ट्रेड की तैयारी
🔍 1. मार्केट ट्रेंड विश्लेषण
- 📈 इंडेक्स (NIFTY, BANKNIFTY) पर ट्रेंड की दिशा तय करें (बुलिश, बेयरिश या साइडवेज़)
- 🔄 15min/1hr/1D चार्ट पर ट्रेंडलाइन, मूविंग एवरेज और RSI देखें
📌 2. बड़े इवेंट्स नोट करें:
- क्या इस सप्ताह कोई इवेंट है?
- RBI नीति
- अर्निंग्स
- वैश्विक खबरें (US CPI, FOMC आदि)
👉 अगर वोलैटिलिटी बढ़ने की उम्मीद हो → Straddle/Strangle प्लान करें
👉 अगर ट्रेंड क्लियर हो → Long Call या Long Put रखें
🛠️ ट्रेडिंग के लिए टूलकिट तैयार करें
टूल/पैरामीटर | क्या देखें? |
---|---|
OI डेटा | कौन-से स्ट्राइक पर सबसे ज़्यादा कॉन्ट्रैक्ट हैं? |
PCR | 1 से ऊपर → बुलिश, 0.8 से नीचे → बेयरिश |
IV (Volatility) | IV Low → खरीदने का अच्छा मौका |
FIIs डेटा | बड़े प्लेयर की पोज़िशन देखें |
🧭 ट्रेडिंग दिनचर्या — बुधवार से शुक्रवार (Live Execution Days)
🔹 टाइमिंग और स्ट्रैटजी
समय | रणनीति सुझाव |
---|---|
सुबह 9:15–10:30 | पहला मूव देखें, ब्रेकआउट/ब्रेकेडाउन पर Long Call/Put |
11:00–1:00 | ट्रेंड कन्फर्म हुआ तो Entry; नहीं तो No Trade |
1:30–2:30 | IV में गिरावट शुरू होती है — स्प्रेड या स्केल डाउन करें |
2:45–3:15 | स्कैल्पिंग के लिए तेजी से मूवमेंट होता है |
🔄 एक्साम्पल ट्रेड प्लान (NIFTY):
प्लान | स्ट्रैटजी | SL | टारगेट |
---|---|---|---|
NIFTY 22,000 Support | Long Call (ATM) | ₹30 | ₹90–₹120 |
NIFTY 22,500 Resistance | Long Put (ATM) | ₹40 | ₹100–₹150 |
Budget या Result Week | Long Straddle/Strangle | ₹150 | ₹300–₹400 |
💡 ट्रेड लेने से पहले चेकलिस्ट
✔️ ट्रेंड कंफर्म हुआ?
✔️ वॉल्यूम और OI डेटा सपोर्ट कर रहे हैं?
✔️ IV बहुत हाई तो नहीं है?
✔️ प्रीमियम वैल्यूफॉर मनी लग रही है?
✔️ SL और टारगेट फिक्स है?
📓 ट्रेड लॉग में क्या रखें?
ट्रैकिंग पॉइंट | क्यों ज़रूरी है? |
---|---|
Date & Time | समय का रिकॉर्ड |
ट्रेड का कारण | एंट्री का लॉजिक |
स्ट्रैटजी व स्ट्राइक | किन ऑप्शन का चयन किया गया |
एंट्री/एक्ज़िट प्राइस | लाभ या हानि का विश्लेषण |
भावनात्मक स्थिति | क्या भावनाएं निर्णय पर हावी थीं? |
सीखा क्या? | सुधार की गुंजाइश कहाँ थी? |
⏰ एक्सपायरी डे (गुरुवार/मंगलवार): अलग प्लान
- टाइम डिके सबसे तेज़ → स्लो ट्रेडिंग, फटाफट एक्ज़िट
- ATM ऑप्शन स्कैल्पिंग के लिए बेहतरीन दिन
- “Zero to Hero” ट्रेड से दूर रहें — unless Risk Defined है
📈 साप्ताहिक समीक्षा — शनिवार/रविवार
- कुल कितने ट्रेड लिए?
- कितने सफल हुए? (% Accuracy)
- सबसे बड़ी गलती क्या थी?
- सबसे अच्छा निर्णय क्या था?
- अगली बार क्या बेहतर करेंगे?
✅ ये रिव्यू ही आपको क्लास से मास्टर बनाएगा।
🔁 प्रो ट्रेडर की आदतें जो आपको अपनानी चाहिए:
आदत | असर |
---|---|
ट्रेड लॉग में लिखना | अपने पैटर्न पहचानना |
वीकेंड एनालिसिस करना | हर हफ्ते बेहतर बनना |
दिन में 1-2 क्वालिटी ट्रेड्स | ओवरट्रेडिंग से बचाव |
SL पर ट्रेड बंद करना | पूंजी की रक्षा |
“नो ट्रेड” भी ट्रेड है | जब सेटअप न हो, तो दूर रहना |
📌 मॉड्यूल 8 समाप्त
अब आप एक ऐसा सिस्टम बना चुके हैं जो हर सप्ताह आपको:
✅ सही एंट्री देगा
✅ बिना भावनाओं के ट्रेडिंग सिखाएगा
✅ लॉस को लिमिट करेगा और मुनाफा चलने देगा
शानदार! अब हम आ गए हैं ऑप्शन बायिंग मास्टरक्लास के अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण मॉड्यूल पर —
जहाँ आप सीखेंगे वो अदृश्य आदतें और सोच जो एक सामान्य ट्रेडर को प्रोफेशनल बनाती हैं।

📘 ऑप्शन बायिंग मास्टरक्लास — मॉड्यूल 9
🧩 मॉड्यूल 9: सफलता की आदतें और अगले स्टेप्स — प्रो ऑप्शन बायर कैसे बनें?
💡 क्यों ज़्यादातर ऑप्शन बायर्स हार जाते हैं?
- इमोशनल ट्रेडिंग
- बिना सिस्टम ट्रेडिंग
- पूरे पैसे का उपयोग
- केवल “एक्सपायरी का जुआ”
❌ इन गलतियों को सुधारना ही आपको भीड़ से अलग करेगा।
🧠 1️⃣ सोच में बदलाव — ट्रेडर की मानसिकता
✅ प्रोफेशनल सोच:
नया माइंडसेट | पुरानी सोच छोड़ें |
---|---|
“मेरे पास सिस्टम है” | “चलो आज कुछ ट्राय करते हैं” |
“हर ट्रेड रिस्क-डिफाइंड होगा” | “इस बार तो डबल हो जाएगा” |
“ट्रेडिंग = बिज़नेस” | “ये तो सट्टा है” |
“हर हफ्ते सीखना है” | “मुझे सब आता है” |
🛠️ 2️⃣ रोज़ की आदतें जो प्रोफेशनल बनाती हैं
आदत | क्यों ज़रूरी है? |
---|---|
📅 रोज़ सुबह मार्केट एनालिसिस | दिन की दिशा और रणनीति तैयार होती है |
📒 लॉगबुक में लिखना | सीखने और गलतियां पकड़ने के लिए |
🎯 SL और टारगेट तय करना | इमोशनल ट्रेडिंग से बचने के लिए |
🧘 मेडिटेशन / ब्रेक | मानसिक संतुलन बनाए रखने के लिए |
📉 लॉस के बाद ब्रेक लेना | लूज़िंग स्ट्रीक से रिकवरी के लिए |
📈 3️⃣ प्रदर्शन (Performance) कैसे ट्रैक करें?
- हफ्ते में 1 बार रिव्यू करें:
- Accuracy (%)
- Win/Loss Ratio
- Net P&L (Profit/Loss)
- कितने SL हिट हुए?
- सबसे खराब और सबसे अच्छे ट्रेड का कारण
👉 ये डेटा आपके ट्रेडिंग के आईने जैसा होगा
🔄 4️⃣ एक सिंपल ट्रेडिंग स्टेप-बाय-स्टेप फॉर्मूला (रोज़ का सिस्टम)
- 🔍 सुबह 8:45–9:15 → ट्रेंड और खबरें देखें
- 📈 9:20–9:30 → चार्ट, ओआई, PCR, IV चेक करें
- 🎯 9:30 के बाद → क्वालिटी सेटअप पर एंट्री लें
- ✅ SL/Target पहले से डिसाइड हो
- 📒 3:30 के बाद → लॉगबुक अपडेट करें
- 🧠 वीकेंड पर – 30 मिनट रिव्यू
🧭 5️⃣ आगे के रास्ते — लेवल अप कैसे करें?
🔸 ऑप्शन बायिंग के बाद, आप सीख सकते हैं:
- ऑप्शन सेलिंग (रिटर्न स्टेबल होती है)
- एडवांस स्प्रेड्स (Iron Condor, Calendar आदि)
- ऑप्शन ग्रीक्स (Delta, Theta, Vega, Gamma)
- सिस्टम ट्रेडिंग (Algo Based Trades)
🛡️ 6️⃣ अंतिम मंत्र — याद रखें:
📌 “ऑप्शन बायिंग में सफलता तेज़ कमाने से नहीं, बल्कि धीरे खोने से आती है।”
✅ आपकी पूंजी बचेगी → सीखना जारी रहेगा → मुनाफा संभव होगा
🎓 कोर्स का फाइनल सारांश: 9 मॉड्यूल में सीखी गई बातें
मॉड्यूल | आपने क्या सीखा? |
---|---|
1. ऑप्शन क्या है? | बेसिक्स, कॉल/पुट, शब्दावली |
2. ऑप्शन बायिंग कैसे काम करती है | बायर्स का फायदा-नुकसान |
3. प्रीमियम की गणना | ग्रीक्स, टाइम डिके और वोलैटिलिटी |
4. सही ऑप्शन कैसे चुनें | ITM/ATM/OTM, लिक्विडिटी |
5. बायिंग स्ट्रैटेजीज़ | Long Call, Put, Straddle, Spread आदि |
6. एनालिसिस टूल्स | टेक्निकल + फंडामेंटल कॉम्बो |
7. रिस्क मैनेजमेंट | SL, कैपिटल सेफ्टी, ट्रेड साइकोलॉजी |
8. वीकली ट्रेडिंग सिस्टम | रोज़ाना और एक्सपायरी का सिस्टम |
9. प्रो ट्रेडर की आदतें | माइंडसेट, रिव्यू, आगे की तैयारी |
🎉 बधाई हो! आपने पूरा कोर्स सफलतापूर्वक पूरा कर लिया ✅
अब आप एक सिस्टमेटिक, रिस्क-अवेयर ऑप्शन बायर हैं — जो भीड़ से अलग है।